Friday 2 March 2018

'मार्था से कहो मत रोए'- शर्ली ऐन विलियम्स की कहानी 'Tell Martha Not To Moan' का हिन्दी अनुवाद (१)




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शर्ली ऐन विलियम्स  : सम्मानित एवं पुरस्कृत अमरीकी कवि, उपन्यासकार, कथाकार, जैज़ कवि। अफ़्रो-अमरीकी जीवन के विषय में लेखन ।
जन्म  : २५ अगस्त १९४४, संयुक्त राज्य अमरीका । निधन : ६ जुलाई १९९९, संयुक्त राज्य अमरीका ।





                                                   मार्था से कहो मत रोए

मम्मा खूब बड़ी सी है, लम्बी और तगड़ी. मर्दों को पसन्द है क्योंकि नरम-नरम, रोएंदार दिखती है। जब उनके साथ होती है तो बस्स, चेहरे पर मुसकान, गालों में गड्ढे और मुंह ऐसा कि जानेमन, मेरी जान के अलावा  कुछ निकलेगा ही नहीं।
अब देखें जरा, बिल्कुल अलग दिखेगी। मुझे तो आज आना ही नहीं चहिए था। जब से लैरी हुआ हमारे बीच कुछ ठीक सा नहीं रहा। पर—वो मेरी मम्मा है। जानती हूं मुझे जब ज़रूरत होगी वो पास होगी। और कई बार जब  आती हूं तो ठीक रहता भी है। लेकिन आज नहीं। नज़रें घूम रही हैं मुझ पर, जान रही हूं क्या आने वाला है। कुछ फुफकारती सी है, चाहती तो है लानत भेजे, पर वो गाली नहीं देती है। “कब होने वाला है मार्था?”
कहना शुरू करती हूं, क्या, पर मालूम है कोई फ़ायदा नहीं। इस तरह की बातों में बड़ों को बेवकूफ़ नहीं बनाया जा सकता तो बता देती हूं।
“नवम्बर के आखिर में”।
“बाप कौन है?”
“टाइम”।
“वही जो ‘लीजन’ में प्यानो बजाता है?”
“हां”
“क्या करेगा वो इस बारे में?”
“मम्मा, वो कुछ ज़्यादा कर नहीं सकता न अब? बच्चा तो आ रहा है।
 बहुत देर तक कुछ नहीं बोली वो। बैठी हाथों को देखती रही। बर्तन धोने से भीगे हाथ, सिकुड़े, बहुत देर तक पानी में रहने से जैसे हो जाते हैं। उठी, डिशक्लॉथ ले कर आई, बर्तन सुखाए, फिर मेज़ पर बैठी। “अभी कहां है वो?”
“गया”।
“गया?” कहां गया?” मैंने कुछ नहीं कहा और तब उसने कोसना शुरू किया। कुछ डर सी गई मैं क्योंकि मम्मा अगर कोसने लगे तो मतलब बहुत ज़्यादा गुस्सा है और मैं यह भी नहीं जानती वो कोस किसे रही है—मुझे या टाइम को। फिर वो मुझसे बात करने लगी। “मार्था, तुम भी निरी मूरख हो। पहली बार उसे देखा था तभी कहा था यह आदमी किसी काम का नहीं। गाने-बजाने वाले के चक्कर में कभी पड़ना ही नहीं चाहिए। देखो, अपनी तरफ़। अट्ठारह की हुईं नहीं अभी, लैरी मुश्किल से दो का है और तुम फिर पेट से हो”। इसी तरह वो कुछ देर बोलती रही, मैं कुछ नहीं बोली। कुछ बोल ही नहीं पाई। जब तक कुछ कहने के लिए अपना मुहं खोलूं वो इतनी आगे बढ़ चुकी होती कि मैं जो कहने वाली थी उसका उस बात से कुछ लेना देना न होता जो वो उस समय कह रही होती। आखिर वो रुकी और पूछा, “अब क्या करोगी? यहां लौटना चाहोगी?” औरीन के साथ मेरा रहना मम्मा को कभी भाया नहीं, और जब मैंने कहा कि नहीं तो उसने पूछा, “ क्यों नहीं? तुम्हारे लिए ज़्यादा आसान होगा”।
मैंने फिर न में सिर हिलाया। “यहां रहूंगी तो टाइम को पता नहीं चलेगा मैं कहां हूं, और टाइम आएगा; वो लौटेगा। हमारे लिए घर बनाएगा वो, तुम देखना”।
“उफ़्फ़, तुम फिर मूरख बन गई, मार्था”।
“नहीं मम्मा, ऐसी बात बिल्कुल नहीं है; टाइम मुझे चाहता है।
“यही कहा था उसने जाने से पहले?”
“नहीं, लेकिन...”

जैसे उस पहली रात जब हम मिले, वो मेरी तरफ़ कुछ यूं आया था मानो अरसे से जानता हो, मानो लगभग उतने ही  अरसे से मैं उसकी हूं। हां, मेरे ख्याल से ऐसे ही हुआ था। क्योंकि उस पहली रात जब हम ‘लीजन’ में घुसे थे मैंने तो उसे देखा ही नहीं था।    
मैं और औरीन, उसी दिन हमें हमारी तनखा के चेक मिले थे। शहर के बड़े बाज़ार गए थे हम और औरीन ने अपने लिए  कुछ नए कपड़े खरीदे थीं। पर उस रात जो वो पहनना चाहती थी, ठीक नहीं लग रही था तो उसे बदलवाने हम भागे भागे शहर वापस गए। तैयार होने हमें जल्दी-जल्दी घर लौटना पड़ा। शुक्रवार की रात और ‘लीजन’ की भीड़। बैठने की जगह चाहिए तो जल्दी पहुंचना पड़ता है। और औरीन को कोई ऐसी-वैसी जगह नहीं चाहिए होती; ठीक सामने की चाहिए होती है। “पीछे बैठो तो कौन देखेगा तुमको? कोई नहीं। देख नहीं सकेगा तो नाचने के लिए कौन कहेगा? कोई नहीं। नाचोगे नहीं तो लोगों से कैसे मिलोगे? लोगों से नहीं मिलना तो घर से बाहर क्या कर रहे हो?” तो सामने बैठे हम। ढेर सारे लोग थे उस रात वहां। डांसफ़्लोर के दूसरी ओर का बैंडस्टैंड भी दिखाई नहीं दे रहा था। हम कुछ और लोगों के साथ एक मेज़ पर बैठे थे। औरीन मुझे कोहनी मारती जा रही थी और कहती जा रही थी कि ज़रा ठसक के साथ बैठूं। मैंने कोशिश की क्योंकि औरीन का कहना है ठसक होना अच्छी बात होती है। संगीत खतम हुआ और लोग डांसफ़्लोर छोड़ कर जाने लगे। तब मैंने टाइम को देखा। वो बस प्यानो से उठ ही रहा था। मुझे एकदम ही अच्छा लग गया क्योंकि उस जैसे दिखने वाले लोग मुझे अच्छे लगते हैं। लम्बा पतला सा। पहली बार देखे किसी मर्द के इतने लम्बे बाल, झबरीले—टाइम ने एक बार बताया था यह अफ़्रीकी गुच्छा है—जो हो वो अच्छा लगता है और वो यह जानता है। चारों ओर देखा उसने, बिन्दास. बैंडस्टैंड से नीचे उतरा और मेरी तरफ़ आने लगा। मेज़ तक पहुंचा और बस देखता रहा। “तुम,” उसने कहा, “तुम मेरी ब्लैक क्वीन हो”। और करीब फ़र्श तक झुक गया।
ओह शिट! मुझे गुस्सा आया, लगा वो कोई खेल खेल रहा है। “क्या साबित करना चाहते हो, मूरख?” मैंने पूछा।
“अरे यार,” वो बोला जैसे मैंने उसे चोट पहुंचाई। कुछ ऐसे ही बोला वो।“अरे यार। इस औरत को मैंने अपनी ब्लैक क्वीन बुलाया—कहा वो मेरे जीवन पर राज कर सकती है और वो मुझे मूरख बुला रही है”।
“और, इसके अलावा, हब्शी,” मैंने तभी उससे कहा, “मैं ब्लैक हूं ही नहीं”। और मैं नहीं हूं काली, टाइम जो भी कहता रहे। बस रंग थोड़ा गहरा है।
“बात क्या है, ब्लैक होने में तुम्हें शर्म आती है? किसी ने बताया नहीं ब्लैक सुंदर होता है?” खूब ज़ोर-ज़ोर से बोलता है टाइम, लोग आस-पास इकट्ठा होने लगे थे। कोई बोला, “हां, हां अब तुम बताओ न उसे,  सोल ।"(सोल म्यूज़िक- अफ़्रीकी अमरीकी संगीत से जुड़ा) परेशान हो कर मैंने औरीन पर नज़र डाली पर वो तो बस मुस्करा रही थी, कुछ कहे बिना। शायद देखना चाहती थी मैं क्या करती हूं तो मैं खड़ी हो गई।
“ठीक है, अगर मैं ब्लैक हूं तो मैं सुंदर ब्लैक हूं”। और मैं बार की तरफ़ चली गई। ऐसे चली जैसे मालूम न हो वो सब पीछे से मेरे कूल्हे देख रहे हैं,सिर ऊंचा किए रखा। टाइम मेरे पीछे बार तक आया, बांह मेरे कंधे पे रखी।
“पीने को कुछ चाहिए?” मैं मना करने वाली थी क्योंकि डर गई थी। किसी मर्द को देख कर मन वैसा नही करना चाहिए जैसा मेरा कर रहा था। न सिर्फ़ वो सब करने का—बल्कि ओह, यह लगना कि उसका वहां होना, मुझे छूना सही है। तो मैंने हां कह दिया। “तुम्हारा नाम क्या है?” तब उसने पूछा।
मैं मुस्काई और बोली, “मुझे ‘प्लेयर’ बुलाते हैं—‘खिलाड़ी’.” औरीन ने कभी बार्कले में किसी से यही कहा था जिसे फिर  कहने को कुछ सूझा नहीं था। तेज़ है औरीन।
“चलो, मुझे टाइम  बुलाते हैं और मैं जानता हूं तुम्हारी मम्मा ने ज़रूर बताया होगा टाइम खेलने की चीज़ नहीं”। उसकी मुस्कान में मेरी मुस्कान से ज़्यादा ठसक है। बोहोत देर तक हम नहीं बोले। वो बस खड़ा रहा, मेरे कंधे को बांह से घेरे, बार के पीछे वाले आइने में हमें देखता। आखिर बोला, “हां, तुम मेरी ब्लैक क्वीन बनोगी”। फिर झुक कर मुझे देखा और हंसा। सूझा नहीं क्या करूं, न यह कि क्या कहूं, तो मैं बस मुस्करा दी।
“नाम बताना है या नहीं?”
“मार्था”।
वो हंसा। “अच्छा नाम है तुम्हारे लिए”।
“मम्मा ने यह नाम रखा कि नेक बनूं। हम सब बच्चों के नाम उसने बाइबल से रखे हैं,” हंसते हंसते मैंने उसे बताया।
“और क्या तुम नेक हो?”
मैंने एक ही साथ हां और न में सिर हिलाया और कुछ बुदबुदाई क्योंकि क्या कहूं समझ नहीं पाई। मम्मा ने सच ही हम सब बच्चों के नाम बाइबल से रखे थे। हमेशा कहती थी, “ मेरा नाम मम्मा ने बाइबल की वेरोनिका के नाम पर रखा था और इसके चलते आज मैं एक बेहतर औरत हूं। अपने बच्चों के नाम मैंने इसीलिए बाइबल से रखे हैं। उनके सामने कोई हो जिसके जैसा बनने की वो कोशिश करें”। पर मम्मा मुझे नेक नहीं मानती, खासतौर पर जब से लैरी हुआ है। टाइम भी शायद मुझे नेक न माने। इसलिए मैंने जवाब नहीं दिया, बस मुस्काई और मेज़ पर वापस आ गई। सुना उसे गाते, हौले से, “ओह मेरी, आंसू न बहाओ,अपनी बहन मार्था से कहो मत रोए”। और मैं ज़रा खुश सी हो गई क्योंकि ज़्यादातर लोग तो, जब मैं उन्हें अपना नाम बताती हूं, इस बारे में सोचते ही नहीं। पता चला वो सच में तेज़ दिमाग है।
‘लीजन’ बन्द हो गया तो हम बाहर नाश्ते के लिए गए। वो और मैं और औरीन और जर्मन ड्रमर। जो जगहें खुली थीं शहर के दूसरी तरफ़ थीं और पहले तो टाइम जाना ही नहीं चाहता था। पर हमने उसे मना ही लिया।
टाइम की आंखे अजीब सी हैं, उनके अन्दर झांकना मुश्किल है। देखते जाओ, देखते जाओ और कुछ पता ही नहीं चलता। जब वो मुझे देखता है, भीतर खुदबुद सी लगती है। बाद में तो आदत पड़ गई पर उस रात तो वह बस बैठे बैठे देखता रहा और ऑर्डर करने के बोहोत देर बाद तक कुछ नहीं बोला।
“तो तुम्हें ब्लैक पसन्द नहीं?” आखिर बोला वो।
“तुम्हें है?” मैंने पूछा। सोचा बस सवाल पूछती रहूंगी तो इतना बोलना नहीं पड़ेगा। पर यह भी नहीं चाहती कि वो अभी इस बारे में बात करे, तो मुस्करा कर कहा, “तुम्हारे बारे मे बात करते हैं”।
“मैं वो नहीं जो मैं हूं”। मुस्कराया वो, मैं भी मुस्कराई, पर अजीब महसूस हुआ, लगा मुझसे उम्मीद है मैं उसका मतलब समझ जाऊंगी।
“यह कैसा खेल रचने की कोशिश कर रहे हो तुम?” औरीन ने पूछा। फिर वो हंसी। “सिर्फ़ इसलिए कि हम देहात से हैं, ऐसा नहीं कि बड़बोले हब्शियों को ताड़ नहीं सकते। क्यों, है न मार्था?”
समझ नहीं पाई क्या कहूं पर जान गई टाइम को यह पसन्द नहीं आया। सोचा बुरा-भला कहने में वो औरीन को पछाड़ देगा पर जर्मन ने औरीन को बांह से घेरा और हंसा, “उसका मतलब बस इतना है कि वो जो होना चाहता है वो नहीं है। इस सुर-प्रेमी पर ध्यान न दो। ये तो हमेशा ही कुछ न कुछ छोड़ता रहता है”। और फिर  भड़भड़ाते हुए वो औरीन के साथ वही सब कहने लगा।
मैंने टाइम को देखा। “यही मतलब था?”
वो सीट पर पीछे पसर गया, टांगें मेज़ के नीचे दूर तक फैली थीं। एक नैपकिन पर उसने नमक छिड़का, उंगली से मिलाया। “हां, यही मतलब था। मेरे बारे में यही सब है। ब्लैक सुन्दर होता है, मार्था”। एक उंगली से उसने मेरा चेहरा छुआ। “गोरों के कहने से तुम मान लेती हो कि तुम बदसूरत हो। ज़रूर तुम सपने भी नहीं देखती होंगीं”।
“देखती हूं न”।
“क्या देखती हो?”
“हैं?” समझ नहीं आया क्या बात कर रहा है। थोड़ा मुस्करा सी दी मैं, कनखियों से उसे देखा। “मैं देखती हूं तुम्हारे जैसे एक मर्द को। अरे, कल रात ही मैने सपना—!”
वो हंसने लगा। “अच्छा, ठीक है, ठीक है”।
तब तक खाना आ गया और हम सब खाने लगे। टाइम के बर्ताव से लगा वो सपनों के बारे में सब भूल ही गया। कभी नहीं समझ पाई उसने कैसे सोच लिया मैं बस ऐसेई उन सपनों के बारे में उसे बता दूंगी जो मैं रात में देखा करती हूं, बस ऐसेई। लगता नहीं कि उन सपनों का, जिन्हें मैं रात में देखती हूं, उतना मतलब है जितना उन बातों का जिनके बारे में मैं दिन में सोचती हूं।        
हम निकल रहे थे जब टाइम एक गोरे के पांव से टकरा गया। उस आदमी का पांव रास्ते में बाहर तक निकला हुआ था लेकिन टाइम तो कभी सामने देख कर चलता ही नहीं । “माफ़ करें,” ज़रा धमकी भरे अन्दाज़ में टाइम ने कहा।
“हेई, सम्भल के दोस्त” वो गोरा भी लगभग टाइम की तरह ही धमकाते हुए बोला। वो थोड़ा बूढ़ा सा, शायद पिए हुए, या शायद कोई ओक्लाहोमा का रहने वाला रहा होगा।
“बन्धु, मैंने कहा माफ़ करें। बाहर रास्ते पर पैर निकाल कर आप बैठे हुए हैं”।
“तुम,” उठते हुए वो आदमी बोला, “देख कर रहना लड़के”।
उसे भला यह कहने की क्या ज़रूरत थी? टाइम पीछे हटा, बहुत धीरे से बोला, “नहीं, मांचोद। तुम। तुम देखना  अपने को और अपनी बेटी को भी। देखना कितने बच्चे पैदा करती है वो मेरे जैसे लड़कों से”। उस आदमी का चेहरा पूरा लाल पड़ गया, पर बूथ में उसके साथ बैठी औरत ने आखिर उसे खींचना शुरू किया, कहा वो बैठ जाए, चुप रहे। क्योंकि टाइम तो उसे मार डालने को उतारू था।
मैंने पहले टाइम की बांह छुई फिर उसकी कमर में बांह डाल दी।“कोई फायदा नहीं ऐसे किसी के साथ लफड़ा करने का”।
टाइम और वो आदमी बस एक दूसरे को ताकते रहे, कोई नहीं चाहता था पीछे हटे। कुछ ही मिन्टों में लोग सोचने लगेंगे क्या चल रहा है। मैंने कहा, “तुम्हारे लिए कुछ है बेबी,” और वो झुक कर मेरी तरफ़ मुस्काया। औरीन ने बात पकड़ ली। हम उस जगह से गाते हुए बाहर निकले, “खूब प्यार करो, खूब, खूब प्यार करो तो सब खूब भला-भला लगता है।
“मैं बजाता हूं तो सुनना भला लगता है?” जब हम कार में थे उसने मुझसे पूछा।
“पहली बार किसी ने यहां इतना अच्छा बजाया है॔”।
“हां,” औरीन बोली। “भला तुम सब यहां ऐश्ले जैसे इस छोटे से कमबख़्त कस्बे में क्या कर रहे हो?”

“जल्द ही हम न्यूयॉर्क जाने वाले हैं,” टाइम ने ज़रा झल्लाते हुए से कहा।
“ओह, शिट, बेबी, तुम...”
“कब जा रहे हो न्यूयॉर्क?” मैंने जल्दी से पूछा। औरीन जब खराब मूड में होती है, कोई कुछ ठीक बात बोल ही नहीं सकता।
“दो महीनों में”। वो पीछे पसरा और मुझे बांह से घेर लिया। “वहां म्यूज़िक में इतना कुछ हो रहा है। यहां शहर में शायद दो बातें हो रही हों। लॉस एंजेलिस में एक-दो बातें और हो रही होंगी। लेकिन वहां, न्यूयॉर्क में, सब कुछ हो रहा है। वहां कोई कभी किसी एक ही खांचे फंसा नहीं रह सकता। इतना सब हो रहा है वहां, होड़ में बने रहने के लिए जैज़ संगीत का जानकार होना बड़ा ज़रूरी है, सच्चा जानकार ! वहां आप हमेशा बढ़ते रहते हैं। शिट, अगर ज़िन्दा हो, बजा रहे हो तो आगे बढ़ना ही बढ़ना है। क्या कहते हो यार,” आगे बढ़ कर उसने जर्मन का कंधा थपथपाया, “अभी निकल पड़ते हैं”।
हम सब ठठा पड़े। फिर मैंने कहा, “सॉरी, मैं नहीं जा सकती, मुझे अपने बेबी को देखना है”।
वो हंसा, “जान, तुम्हारा बेबी तो यहीं है”।
“अच्छा, तो फिर मेरे दो बेबी हैं”।
हम तब अपार्टमेण्ट हाउस के सामने आकर रुके पर कोई हिला नहीं। आखिर टाइम ने हाथ आगे बढ़ा कर मेरे बाल छुए। “तुम मेरी ‘ब्लैक क्वीन बनोगी?”
मैं सीधे आगे रात को देखती रही। “हां,” मैंने कहा। “हां”।
हम अन्दर गए और पहले मैंने लैरी को देखा क्योंकि कई बार वो लड़की ठीक से उसका ध्यान नहीं रखती। कई बार रात को जब मैं आती हूं वो ओढ़ने के बाहर कांपता पड़ा होता है लेकिन नींद के मारे वापस अन्दर नहीं घुसता। टाइम अन्दर आया तो मैं औरीन के दोनों बच्चों को ओढ़ने से ढक रही थी।
“तुम्हारा कौन सा है?”
मैं लैरी के बिस्तर के पास गई। “यह मेरा बेबी है,” मैंने उस बताया।
“नाम क्या है?”
“लैरी”।
ओह, शायद उसके डैडी के नाम पर रखा है?”
जिस तरा वो बोला मुझे अच्छा नहीं लगा। जैसे मैंने गलती की कि लैरी का नाम उसके डैडी के नाम पर रखा। “और किसके नाम पर रखती?” वो कुछ बोला नहीं और मैने उसे वहीं खड़ा छोड़ दिया। अब मुझे गुस्सा आ गया और मैं अपने बेडरूम में आ कर अपने कपड़े उतारने लगी। वो हब्शी चाहे तो रात भर वहीं खड़ा रहे, मैंने सोचा, मेरी बला से; औरीन करती रहे बात जर्मन से, और उससे भी। पर टाइम बेडरूम में आया और मुझे बांहों में घेर लिया। मेरे बाल और मेरा चेहरा और मेरा चूचुक छुआ और मैं डर गई। खुद को उससे अलगाने की कोशिश की पर उसने कस कर पकड़ा था। “मार्था,” वो बोला, “ब्लैक मार्था.” फिर वो बस खड़ा रहा वहीं, मुझे पकड़े, बिना कुछ बोले, अपने हाथ से मेरे चेहरे को एक तरफ़ से ढके। मैं खड़ी थी, कांपती, पर उसका ध्यान नहीं गया. जानती हूं किसी औरत को उस तरह महसूस नहीं करना चाहिए जैसे मैं टाइम के लिए करती हूं, एकदम से तो नहीं. पर मैं करती हूं. 
वो मुझसे वो सब कहता है जो पहले किसी ने नहीं कहा. और मैं उससे कहना चाहती हूं मुझे इतना अच्छा और कोई नहीं लगा जितना कि वो. मगर किसी से यह कह देने से कभी वो चला भी जाता है, सोचता है तुम्हारा उसे इतना ज़्यादा पसन्द करना उसे लटका देगा.
“तुम और मैं,” बाद में बिस्तर में वो मुझसे कहता है, “हम साथ में खूब मज़े में रह सकते हैं.” फिर हंसा, “सोचता था मुझे बस वो म्यूज़िक चाहिए, मगर लगता है वो म्यूज़िक बज सके इसके लिए एक औरत चाहिए. तो ‘म्यूज़िक और मैं’ की जगह अब होगा ‘म्यूज़िक मैं और तुम’.”
“लैरी को छोड़ दिया तुमने,” मैंने उससे कहा. लगता नहीं वो यह सुनना चाहता था. मगर लैरी मेरा बेबी है.
“तुम आजाद क्यों नहीं हो,” बड़े धीमे से वो बोला. फिर, “अगर तुम्हारा बच्चा है तो जब मैं जाऊंगा तुम, कैसे चलोगी?”
“कब जा रहे हो?”
उसने मेरी तरफ़ पीठ कर ली. “ओह, पता नहीं मुझे. तुम जानती हो गाने में क्या है, ‘औरत को उदासी घेरती है तो वो सर गड़ा के रो लेती है. मगर मर्द जब उदास होता है तो जूते उठाता है और निकल जाता है.’ अगली बार जब मुझे उदासी घेरेगी,” वो थोड़ा हंसा, “जब अगली बार वो मेरी बर्दाश्त से बाहर होगा तो यह जगह छोड़ दूंगा मैं, कहीं और चला जाऊंग़ा. हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता है. कमख्त गोरा.” करवट बदल के वो मेरी तरफ़ मुड़ा. “तुम अच्छी महसूस होती हो. वो मेरे पीछे है और मैं सपनों के. तुम को मैं पागल लगता हूं न? पर हूं नहीं. मेरे अन्दर बस इतनी, इतनी सारी चीज़ें चल रहीं हैं कि समझ नहीं पाता किसे पहले बाहर आने दूं. सभी बाहर आने को मचल रही हैं, बुरी तरह. जब मैं बजाऊं—मुझे बेहतर होना पड़ेगा. तुम मदद करोगी मेरी?”
“हां, टाइम, करूंगी मैं तुम्हारी मदद.”
“बात ये है,” हाथ आगे बढ़ा कर उसने बत्ती जला दी और झुक कर मुझे देखने लगा, “मैं वो नहीं हूं जो मैं हूं. भीतर ही भीतर घुमड़ता रहता हूं, बाहर दिखा नहीं पाता. जानता ही नहीं बाहर कैसे लाया जाए. कभी कॉल्ट्रेन को बजाते सुना है? वो बन्दा सई है. बाहर वही दिखाता है जो अन्दर महसूस करता है. जब मैं वैसा कर पाऊंगा, कहीं पहुंच जाऊंगा. मगर मैं अकेले वहां तक नहीं जा सकता. एक औरत चाहिए मुझे. काली औरत. वो दूसरी औरतें तो आत्मा चुरा लेती हैं, कुच्छ नहीं छोड़तीं. मगर काली औरत...” वो हंसा और मुझे पास खींच लिया. वो मुझे चाहता है, और मुझे कुछ नहीं चाहिए.

                                                                                                                                                  क्रमश:...

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